चांद की चाहत

सफर की मंजिलो में हमे अब
मजा कहा कोई आता है।
महबूब के जाने के बाद
अब गम ही तो सताता है।
अधेरी काली रातों में जब
सन्नाटा सा छा जाता है।
चांद की चाहत में फिर एक तारा
टूट कर बिखर जाता है।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Leaving someone

देखो ना , वो मुझसे रूठा हुआ है - धृति पंत

लोगों के पीछे भागना छोड़ दो - धृति पंत